तेरे दर पर ठहरने को जी चाहता है,
तेरे सज्दे में मरने को जी चाहता है।
तेरे जलवे से रौशन है ये सारी सृष्टि,
उस उजाले में घिरने को जी चाहता है।
तेरी आँखों में इक बेक़रार आईना है,
उस नज़र में सँवरने को जी चाहता है।
तेरी ख़ामोशियों में भी सदा गूँजती है,
उस ख़मोशी में उतरने को जी चाहता है।
तेरी रहमत से चलता है धड़कता जहाँ,
उस करम से निखरने को जी चाहता है।
रूह कहती है तू ही है सच्चा मदीना,
उस पनाह में बसने को जी चाहता है।
लोग कहते हैं मोहब्बत से जलता है दिल,
उस जलन में सँवरने को जी चाहता है।
राशा की आरज़ू है तेरा दीदार हरदम,
तेरी आँखों में पिघलने को जी चाहता है।
-इक़बाल सिंह “राशा”
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड