जब जब भी ये गुस्ताख़ निगाहें
उठतीं रहेंगी।
राह कुर्बानियां की यूहीं सजती रहेंगीं।
तुम हर साल लगाना इन कुर्बानियों के मेले
हम बनकर रूह इनमें आते रहेंगें।
बहुत ठोस है मिट्टी इस वतन की.. इसमें..
मज़बूत इरादों वालें हम सा सिपाही
पनपतें रहेगें।
तुम चैन से सोना ऐ मेरे वतन के प्यारों
हम हर दुश्मनों से तुम्हें बचाते रहेगें।
हम है फौज़ भारत के आन बान शान की
और ...
जब जब भी ये गुस्ताख़ निगाहें उठती रहेंगी
हम राह कुर्बानियां की यूहीं सजातें रहेगें..
हम सा वीर मां भारती की सेवा में ..
दिन रात आते जाते रहेंगे ..
राह कुर्बानियां की यूहीं सजातें रहेगें...
राह कुर्बानियां की यूहीं सजातें रहेगें..

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




