चुपचाप बैठा हूँ रेत के टीलों पर,
तारों से भरा आकाश।
मन को मोह ले।
चाँदनी का शीतल स्पर्श,
रात की चादर सी।
रेगिस्तान में सन्नाटा,
मन को बहला ले।
हवा का झोंका,
रेत को उड़ा ले जाता।
लहरों सी उठती,
फिर धीरे से बैठ जाती।
तन्हाई का एहसास,
मन में समा जाता।
फिर भी ये रात,
कितनी खूबसूरत लगती।