घायल परिन्दे - सी
तड़पती मुहब्बत
जब- जब भी चाहती है
तुम्हारी रूह का आश्रय
तब- तब तुम टिश्यू पेपर के
रूप में लौट आते हो
जब छूते हो मखमली गालों को
उंगलियों के पोरों सा स्पर्श जगाते हो
क्षणभर के आश्रय में दे जाते
हृदय को गहरा सुकून
भीग कर तुम स्वयं
अश्रु में बहती मुहब्बत में
कठोर दरख़्त से
नर्म रेशे हो जाते हो
मिलते हैं एक दूजे से जब हम
ख़्वाबों की नई कोपलें फूटती
मैं लहलहाती पत्तियों संग
तुम रूखे दरख़्त से वृक्ष हरे हो जाते हो
----डॉ निर्मला शर्मा