ज़िंदगी बन गयी अब किराये का घर,,
लोग जीते हैं अपनी वजह छोड़कर ,
घर से बाहर वो रहते इधर से उधर
,अब ठिकानों में ठहरने की आदत नही,
लोग अपनी खुशी अब समझते नही,
दूसरे की खुशी से झगड़ते यहां,
लोग पहले भी थे लोग अब भी यहां,
पहले इंसान रहता था इंसान में
दिल के अरमान से दिल के ईमान से,
अब तो महलों में फिसलन भरी इस कदर ,
गिर के मर जाते हैं अपने ही छाव में,
अब तो घर में है सामान महंगे मग़र,
घर में बूढ़ों बुजुर्गों की इज़्ज़त कहा,
शहरी चलन में सब बदला हुआ ,
अब तो माटी की खुशबू दफन हो गई
जिंदगी अब खिलौने की घर हो गई ,
जिंदगी अब किराये---
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




