रात में सपने सुहाने अब नहीं
लोग भी वैसे पुराने अब नहीं
अब तो केवल जी रहे हैं जिंदगी
मस्तियां और वो फंसाने अब नहीं
आज शहरों में बिखरते रोज घर
गांव जैसे वो ठिकाने अब नहीं
रात में लौटें कमाकर रोटियां
मस्त अल्हड़ वो जमाने अब नहीं
रोजमर्रा की जरूरत आज अब
शांति मन की वो तराने अब नहीं
सूर्यांश शुक्ल
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