"ग़ज़ल"
मिरे दोस्त मुझे तुम से मोहब्बत है आज भी!
तिरी दोस्ती की मुझ को ज़रूरत है आज भी!!
दो इंसानों के बीच का एक बे-ग़रज़ रिश्ता!
इस रिश्ते में ज़माने की अक़ीदत है आज भी!!
जहाॅं घट रही हैं ख़ून के रिश्तों की क़ीमतें!
उसी दुनिया में दोस्ती की क़ीमत है आज भी!!
मिरे हम-नफ़स माना कि ख़ुद-ग़रज़ी का दौर है!
ये दोस्ती बची है जहाॅं उल्फ़त है आज भी!!
यही रिश्ता है उस ख़ुदा का महबूब-ए-ख़ुदा से!
दर-हक़ीक़त ये दोस्ती इबादत है आज भी!!
रहे ग़ुर्बत में भी 'परवेज़' सलामत ये दोस्ती!
मेरे लिए ये सब से बड़ी दौलत है आज भी!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad
The Meanings Of The Difficult Words:-
*बे-ग़रज़ = नि:स्वार्थ (selfless); *अक़ीदत = विश्वास (faith); *हम-नफ़स = दोस्त या साथी (friend); *ख़ुद-ग़रज़ी = स्वार्थ या मतलब-परस्ती (selfishness); *उल्फ़त = मोहब्बत (love); *महबूब-ए-ख़ुदा = ख़ुदा का प्यारा अर्थात पैग़म्बर मोहम्मद (beloved of God or Prophet Mohammad); *दर-हक़ीक़त = वास्तव में (in fact); *इबादत = पूजा (prayer); *ग़ुर्बत = ग़रीबी (poverty); *सलामत = महफ़ूज़ या सुरक्षित (safe).