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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

पूछता हूं आसमां से

घर आलीशान हैं, मगर सब बियाबां से..
इसका है शिकवा, मुझको अब जहाँ से..।

रिश्ते–नाते सब रह गए मतलब के..
बे–मतलब के, अब लाऊं कहा से..।

तेरे चांद सितारे, जाने कैसे महफूज़ हैं..
होकर हैराँ, मैं पूछता हूं आसमाँ से..।

आंधियों ने मिटाए है, निशाँ इन राहों के..
जाने कब मिलेंगे फिर, भटके कारवाँ से..।

हम दिल का हर राज़, ज़ाहिर करते मगर..
किसी ने कहा ही नहीं मुहब्बत की ज़ुबाँ से..।

पवन कुमार "क्षितिज"




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (5)

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सुभाष कुमार यादव said

बेहतरीन ग़ज़ल क्षितिज सर।
रिश्ते–नाते सब रह गए मतलब के..
बे–मतलब के, अब लाऊं कहा से..।👌👌

कमलकांत घिरी said

वाह कमाल का लिखे है सर जी बहुत सुंदर रचना 👌👏🙏 प्रणाम स्वीकार करें 🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

"क्या बात है... हर शेर जैसे तन्हाई का आईना हो!"
"ग़ज़ल नहीं, ये तो रूह की पुकार लगती है — बेमतलब की दुनिया में बेमिसाल अल्फ़ाज़!"
"हर मिसरा दिल को चुपचाप छू जाता है... जैसे किसी ने खामोशी से सब कुछ कह दिया हो।"
💔🖋️✨ आदरणीय को सादर प्रणाम

शिवचरण दास said

बहुत खूब. ... बेमतलब के अब लाऊं कहां से. ...मतलब के भी ढूंढने पड़ते हैं. ..वाह

श्रेयसी said

वाह बहुत सुंदर बहुत ख़ूब लाज़वाब रचना 🙏🙏

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