घर आलीशान हैं, मगर सब बियाबां से..
इसका है शिकवा, मुझको अब जहाँ से..।
रिश्ते–नाते सब रह गए मतलब के..
बे–मतलब के, अब लाऊं कहा से..।
तेरे चांद सितारे, जाने कैसे महफूज़ हैं..
होकर हैराँ, मैं पूछता हूं आसमाँ से..।
आंधियों ने मिटाए है, निशाँ इन राहों के..
जाने कब मिलेंगे फिर, भटके कारवाँ से..।
हम दिल का हर राज़, ज़ाहिर करते मगर..
किसी ने कहा ही नहीं मुहब्बत की ज़ुबाँ से..।
पवन कुमार "क्षितिज"