मैंने चिट्ठियां जो भेजी थी तुमको,
वो तमाम तो होंगे अब भी,
तुम्हारी क़िताबों के उल्टे पन्नों पे मेरे नाम तो होंगे अब भी,
तुम हज़ार मिन्नतें कर लो मुझे भूल जाने की,
मगर तुम्हें याद हमारी मुलाकात की वो आखिरी शाम तो होंगे अब भी..!
---कमलकांत घिरी✍️