प्रेम पुकार।।
वो मधुर स्वप्न नहीं
वो वक्त का अपनत्व नहीं
वो कायरों का डर नहीं
वो स्नेह स्वर नहीं
उसे पाने लगते हो
तो खोने का डर है
उसे मनाने लगते हो
तो रूठने का डर है
उसमें पीड़ा होती ही नहीं
ना उसका त्योहार है
ना वो जनता का रोम रोम है
ना उसकी कोई सरकार है
वो तो हताश सागर में
किनारे की लकीर
उसके लिए हर सौदा बेकार है
वो तो प्रेम पुकार है
सुनोगे तो साकार है
वो तो प्रेम पुकार है।
प्रेम की सतह मैं,
प्रेम का आकाश भी मैं हूं,
इन दोनों के बीच का खाली स्थान भी मैं हूं,
इन दोनों को भरने वाला,
इंसान भी मैं हूं,
इंसान ही मैं हूं,
प्रेम का पथ ,
प्रेम का राही भी मैं हूं,
प्रेम को पाने वाला,
प्रेम से दूर भी हूं,
प्रेम भी मैं हूं,
प्रेम ही मैं हूं।।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




