नजारे की तलाश में नज़र बदलते रहे,
न मिली मंजिल तो डगर बदलते रहे।
उम्र कटती तो नहीं एक ही सफर में,
इसे काटने के लिए सफर बदलते रहे।
ताउम्र भटकते रहे सुकून की चाह में,
न मिला वो कहीं तो शहर बदलते रहे।
न लिख सका जब अपने रंज-ओ-ग़म,
इसके लिए कितने ही बहर बदलते रहे।
🖊️सुभाष कुमार यादव