"ग़ज़ल"
सुन ऐ मिरे महबूब! मुझ को तुम से प्यार है!
ये दिल फ़िदा है तुम पे जाॅं तुम पे निसार है!!
तिरी ऑंखों से जो पी थी मैं ने जाम-ए-मोहब्बत!
ये उसी प्यार के नशे का गुलाबी ख़ुमार है!!
मैं किस क़दर बेताब हूॅं तुम्हें पाने के लिए!
तिरी इक झलक के वास्ते दिल बे-क़रार है!!
तिरी धड़कनों के साज़ पे धड़कता है मेरा दिल!
तिरे दिल से जुड़ा ही मिरे दिल का तार है!!
ये ज़ुल्फ़ जहाॅं लहराए वहाॅं सावन का महीना!
ये क़दम जहाॅं पड़े वहाॅं फ़सल-ए-बहार है!!
इक आशिक़ दिखा तू ढूॅंढ के 'परवेज़' के जैसा!
तिरे चाहने वालों की इक लम्बी क़तार है!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad