अपनी मर्ज़ी मैं साथ लिए..
किस्मत अपनी हाथ लिए..
छोड़ चला पथ घाट पुराने..
यादों की इक बारात लिए..।
राह नई सी, दिशा बेगानी..
शंका मन में है अनजानी..
कोई साथ ना बंधु–सखा..
प्रीत तो सच में है बेगानी..।
कुछ देर सूरज साथ चला..
कब तक देता वो साथ भला..
रात आई काली चादर ओढ़े..
चांद ने फिर विरहन को छला..।
सफ़र का जाने पैगाम है क्या..
इसका भी जाने अंजाम है क्या..
दूर तलक हैं क्यूं सब सूनी राहें..
अधूरे सपनों का इल्ज़ाम है क्या..।
चेहरे सब के सब धुंधले से क्यूं हैं..
प्यार के सब बंधन खुले से क्यूं है..
मैने तो मन को रखा वैसे का वैसा..
वो ना जाने इतने बदले से क्यूं है..।
पवन कुमार "क्षितिज"