दर्द-ओ-ग़म से उभरने का कोई उपाय मिल जाए,
उनके दिल में ना सही पर यादों में ही पनाह मिल जाए।
जाल सी उलझी हुई है ज़िंदगी,
कोई इसे सुलझाने वाला किरदार मिल जाए।
दिल से चाहने वाला अपना कोई नहीं,
किसी अजनबी का ही प्यार मिल जाए।
फ़िक्र है ही नहीं उन्हें मेरी थोड़ी भी,
दे सकूं उन्हें फ़िक्र की, ऐसी कोई मिसाल मिल जाए।
मिटा दूं सारे गिले शिकवे उनके दिल से,
ग़र कोई ऐसी रात मिल जाए।
निभाऊंगी अपना किया हर वादा मैं तो,
बस इस रूठी ज़िंदगी का साथ मिल जाए।
अपनी भी ज़िंदगी सुकून से कटेगी,
ग़र दर्द देने वालों से खुशियों की सौग़ात मिल जाए।
✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️