सुना है —
वो घर का राजा है।
सारा घर उसके आदेश से चलता है,
उसकी थाली पहले लगती है,
उसके चेहरे की शिकन से घर का मौसम बदलता है।
पर कभी किसी ने पूछा —
उसकी आँखों में प्रेम है या सत्ता?
बचपन में जब बेटे ने गलती की,
तो थप्पड़ पड़ा —
“ताकि आदमी बन सके।”
बेटी ने सवाल किया,
तो आँखों से चुप करवा दिया —
“घर की औरतें ज़्यादा मत बोला करें।”
माँ ने अपनी थकान जताई,
तो कहा —
“मैं कमाकर लाता हूँ,
बस आराम चाहिए।”
वो पालनकर्ता नहीं बने —
बल्कि नियंत्रक बन गए।
बच्चों की मुस्कान तक
सिर झुका के माँगनी पड़ती थी।
हर गलती पर —
“बाप हूँ तेरा!”
हर सवाल पर —
“जुबान लड़ाता है?”
उसकी चुप्पी आदेश बन गई,
उसकी ऊँची आवाज़ ‘परंपरा’,
और उसके गुस्से को कहा गया —
“बड़ों का हक़।”
वो कभी रोया नहीं —
क्योंकि मर्द रोते नहीं,
पर क्या किसी ने देखा?
उसके भीतर एक बच्चा
जो कभी सुना नहीं गया।
वो हर रिश्ते से डर की दीवार बन गया,
“इज़्ज़त” कमाने के नाम पर,
घर को डर से चला गया।
जो इज़्ज़त खामोशी से खींची जाए —
वो इज़्ज़त नहीं,
एक मौन प्रताड़ना है।
मैं इस घर का पिता हूँ!
वो चिल्लाया,
जैसे कोई बर्खास्त राजा
अपने आख़िरी आदेश पर मोहर लगवा रहा हो।
पर उसकी आवाज़ में वो भरोसा नहीं था,
जो एक सहारे में होना चाहिए।
वो गरजता था,
क्योंकि भीतर डरता था —
कि कहीं कोई उसके “सत्तामूल्य” को चुनौती न दे दे।
घर के हर कोने में
उसकी मौजूदगी से डर लगता था —
टीवी की आवाज़ धीमी,
हँसी रोक दी जाती,
और बच्चों की साँसें तक
सलीके से चलनी चाहिए थी।
पर क्या किसी ने पूछा?
“पिता, आप खुश हैं?”
क्या आपको कभी
खुद को बाप कहकर गर्व हुआ,
या सिर्फ़ ये साबित करने में ज़िंदगी बिता दी
कि आप ही “सही” हैं?
आपकी पत्नी को एक साथी चाहिए था,
पर उसे मिला एक निरीक्षक।
आपके बच्चे दोस्त ढूंढते थे,
पर उन्हें मिला एक अदालत —
जहाँ हर गलती को
‘बर्बादी’ घोषित कर दिया गया।
आपने दी परवरिश नहीं — शर्तें दीं,
आपने सिखाया डरना — सोचने से पहले।
और फिर कहते हैं —
“आज की पीढ़ी संवेदनहीन हो गई है।”
“तुम राजा नहीं हो, पिता हो —
सिंहासन नहीं,
सीना होना चाहिए जिस पर बच्चा रो सके।
अगर तुम्हारी मौजूदगी में सब चुप हैं —
तो समझो,
तुमने एक ‘घर’ नहीं,
बस एक ‘ख़ामोश जेल’ बनाई है।”
अगर आपकी मौजूदगी में बच्चे खुलकर साँस नहीं ले सकते,
तो आप पिता नहीं —
बस एक डर का नक़ाब हैं।
पिता होना आसान नहीं,
पर यह कोई “सत्ता-पद” भी नहीं।
यह एक थकी हुई माँ के लिए कंधा,
एक डरे हुए बच्चे के लिए भरोसा,
और एक टूटते घर के लिए बाँध होना चाहिए