दिलो दिमाग़ में अनगिनत बहाने रखकर
हम सो गए ख़्वाब को सिरहाने रखकर
जब ख़्वाब दिमाग़ में आता है
पूरा होने को मचलाता है
थोड़ा सा अभी वक्त लगेगा
मन भी ये बतलाता है
नहीं सोना है अब ख़्वाब पुराने रखकर
हम सो गए ख़्वाब को सिरहाने रखकर
जब ख़्वाब मुक़म्मल ना हो तो
क्या ख़्वाब देखना छोड़ दें हम
ख़्वाबों से ही तो रिश्ता है मेरा
क्या ख़्वाब से रिश्ता तोड़ दें हम
क्या करें जिंदगी के अबूझ तराने रखकर
हम सो गए ख़्वाब को सिरहाने रखकर
ये सिलसिला अब नया नहीं है
हर रोज रात भर चलता है
सिरहाने से दिमाग़ में जाने को
मेरा हर ख़्वाब मचलता है
पर क्या करें ख़्वाबों के ज़माने रखकर
हम सो गए ख़्वाब को सिरहाने रखकर
-सिद्धार्थ गोरखपुरी

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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