मिल न सका कोई दोस्त इसका क्या गिला करें ,
दुश्मनों के इस शहर में , इसका क्या गिला करें ,
मिला जो भी अपनी गरज़ तक रहा हमनशी
गरज़ ने कर दिया मतलबी , इसका क्या गिला करें
मिला है जो इसके इलावा और मिलेगा भी यहाँ क्या,
मिला भी है जो रहेगा कहाँ, इसका क्या गिला करें
फ़रिश्ता समझता था उसको, वो इन्सान भी न निकला
आदमी था आदमी ही निकला .इसका क्या गिला करें
डर रहा हूँ उस शख़्स से जो अपना कह रहा है मुझे
दस्तूर ए दुनियां है अगर ये , इसका क्या गिला करें
कह दिया है उसने दोस्त मुझे, मेरा हश्र क्या करेगा
उसके पास भी कोई रास्ता न था, इसका क्या गिला करें