मन के किवाड़ खोल
दिल में उमंग भर
धरती के श्रृंगार के पावन सिंदूर का
छतरी को खोल आनंद लो इन बूंदों का
स्वागत करो इन प्यारी प्यारी बूंदों का.....
धरती का जीव प्राण तेल ये बूंद
धरती के लिए वृक्ष जैसे बाती हैं
आई है प्रकाश ऋतु प्रकृति श्रृंगार ऋतु
छतरी को खोल आनंद लो इन बूंदों का
स्वागत करो इन प्यारी प्यारी बूंदों का.....
जलती धरा में गिरे धार बन के बह चली
पेड़ो के पत्तियों को उजल धवल करती है
जड़ों में गिरे पेड़ो के प्राण फलो में मिठास
मानव और जीव को ह्रदय प्रिय लगती है
काहे बंद छतरी में घूमते हो आप सब
छतरी को खोल आनंद लो इन बूंदों का
स्वागत करो इन प्यारी प्यारी बूंदों का.....
बड़ी दूर से हैं आई अपनो को छोड़ आई
तेरे पाप धोने को धरा पर आई है
करो श्रृंगार अपनी घरणी और मात का
लगाओ पेड़ और सजाओ इस धरा को
जीवन का आधार है जो धरा पेड़ बाग वन
जल बिन नही कल मानो इस बात को
व्यर्थ न बहाओ जल सहेजो हर बूंदों का
छतरी को खोल आनंद लो इन बूंदों का
स्वागत करो इन प्यारी प्यारी बूंदों का.....

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




