तू धुँध में था, मैं ख़्वाब में था,
काग़ज़ जला था, आफ़ताब में था।
चुप की तहों में कुछ जलता रहा,
तेरा ही नाम, हर हिसाब में था।
खिड़की पे बैठी इक परछाईं,
शायद तेरा ही इक जवाब में था।
बारिश की बूँदों में जज़्ब हुआ,
ग़म-ए-यार कुछ ख़ास ख़िताब में था।
बिस्तर की सिलवटें बोलीं बहुत,
इक राज़ भी तेरे हिज्र-नक़्शाब में था।
लफ़्ज़ों को मोती कहने लगा,
जब दर्द भी इक गुलाब में था।
नूतन प्रजापति
स्वरचित
बड़ागाँव मध्यप्रदेश