चेहरे की चमक मन की धुक-धुकी।
ख्वाहिशें बाकी नही पूरी धुल चुकी।।
वक्त बदला हालात छुपाए ना गए।
दर्द देने वाले की मंशा बदल चुकी।।
हर रोज सोच आता जरूर उसका।
चाल पुरानी मगर बखूबी चल चुकी।।
मसीहा था कभी मुश्किल से बचाता।
खुदा का खैर है मुश्किल टल चुकी।।
शहर-ए-जिन्दगी पर यकीन हो चला।
थोड़ी बची 'उपदेश' बाकी ढल चुकी।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद