कुछ हमारी भूलें थीं, कुछ ज़िंदगी की गफलतें..
बेहिसाब नफरतें थी, बड़ी हिसाब की मोहब्बतें..।
हर–एक दिन गुज़रा, सख़्त इम्तिहान के दौर से..
दरख़्वास्त कहीं मंज़ूर नहीं, आंसू ही सहूलियतें..।
वो तो लिखते थे, पाई पाई का हिसाब बहियों में..
तभी हम बतला ना पाए, अपनी कभी ज़रूरतें..।
मालूम नहीं ये किसकी, दुआओं का असर था..
खुशियां कोने में रोती रहीं, ग़मों की थी बरकतें..।
दुनिया के सब उसूल और पाबंदियां हमारे हिस्से..
उनका काम इतना, जारी करे नाम हमारे इबरतें..।