माना बहारें आई है मगर कभी इतराना नहीं
परिवर्तन नियम है प्रकृति का आए खिज़ाँ तो घबराना नहीं
आज वक्त है तुम्हारा इस पर नाज़ कैसा
कल किधर हो रुख़ जाने कौन फिर भी अश्क बहाना नहीं
कश्ती पर बैठोगे तो हिचकोले खाएंगे हीं
उस वक्त रहना है स्थिर कभी डगमगाना नहीं