कारवां पर कारवां मेरे सफर में आता रहा,
मैं इस सफर में अकेला जाता रहा,
दर्द खामोशी मोहब्बत की घुटन का फासला आता रहा,
मैं इन सब को जोड़कर अकेला सफर में जाता रहा,
दुर्लभ हुआ दुष्कर हुआ रात का समा भी घबरा गया,
देखो मुसीबतों से भरा प्याला आ गया,
उसे पीने वालों की संख्या बहुत कम थी,
अधिक से अधिक लोगों की आंखें नम थी,
एक कहते हैं हम तो कांति युक्त हैं,
हम अमरता के राही है, हम पूजनीय,
हमारे ऊपर विश्वास होगा,
हमारा ही आकाश होगा,
हम इस प्याले से तटस्थ हैं,
प्याला घूम कर उन कर्म हीन आलसी और दुराचारी ओ की आंखों में भटकने लगा,
उनका तेज प्रताप और उनमें शक्ति की ज्वाला भभकने लगी,
बाहर मीठा शब्द कहकर अंदर दुर्भावनाओं का बीज सींचकर उस प्याले को दरकिनार करके सिर्फ उस संपन्नता को देखने लगे,
अब कैसे होगा संचालन,
कौन पिएगा जहर को,
कौन हर लेगा इस कहर को,
कैसे लाएगा संतुलित शहर को,
इस सफर में अब आता है वही अकेला,
जिसने सब संभावनाओं के परिणाम को झेला,
वही है अकेला,
उसके आने से,
ऐसा लगता है सब कुछ संपूर्ण है,
जो संभावनाओं पर टिके हैं वही अपूर्ण हैं,
क्योंकि कर्म हीन उनके प्रयास है,
किसे हकीकत का अभ्यास है,
जो ठुकरा कर अपनाने की बात करते हैं,
वह अपना कर भी कब मुलाकात करते हैं,
अकेले ही निकले थे अब अकेले ही आएंगे,
जहर का प्याला लाओ उसे मिलकर हृदय से लगाएंगे,
कहते हैं जब भी कोशिश होगी,
तो वह अदम्य साहस से होगी,
रुकने वालों में एक ही कमी है,
उनके जीवन में पहले से ही नमी है,
हर बार दोष क्यों उत्पन्न करते हो,
गुण का पक्ष है कि दोष आएगा,
और दोष का पक्ष है गुण आएगा,
पी गए हम अकेले साथी,
जहर की भी इच्छा देखो,
कंठ पर आकर ही टिका है,
पता नहीं किन किन का हृदय बिका है,
किस-किस ने नहीं इस कहानी से कुछ सीखा है,
अकेला साथी ही इन राहों में दिखा है,
नपा तुला संशोधन निष्कर्ष है,
जीवन आदि अंत नहीं सिर्फ संघर्ष है।।