अपने, अपने ना हुए,
तो परायों को अपना बनाना पड़ा।
जब पराए भी अपने ना हुए,
तो ज़िंदगी को तन्हा बिताना पड़ा।
खुशी नहीं है ज़िंदगी में कोई,
फिर भी मुझे हॅंसना पड़ा।
गमों को छुपाकर मुझे,
हमेशा मुस्कुराना पड़ा।
जिसने भी रिश्ता जोड़ा मुझसे,
हर उसी से धोखा खाना पड़ा।
वफ़ादारों ने नहीं रखा मुझसे कोई रिश्ता,
तो धोखेबाजों से भी रिश्ता निभाना पड़ा।
जब अपनों ने ही अपने घर से बेदखल कर दिया,
तो परायों के घर रहना पड़ा।
और जब परायों ने भी निकाल दिया,
तो फुटपाथों पर सोना पड़ा।
💐✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️💐