पाप के कुचक्र
डॉ एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात "
बेचकर अपना ईमान यहां,
मांगता है,
अब जीवनदान यहां।
धोखाधड़ी और ठगी के, नए-नए पैतरे अपनाकर।
बच्चों का, भविष्य खा कर।
किए हैं, तूने घोटाले।
छीने हैं, मुंह से निवाले।
खाली हाथ आया है, खाली हाथ ही जाएगा।
कैसे भूल गया, तू इस कर्म के चक्र को।
यही तोड़ेगा तेरे,
पाप के कुचक्र को।