कापीराइट गीत
सीने में दिल तो है पर धङकता नहीं
आंखों में है समन्दर पर छलकता नहीं
क्यूं चैन ही नहीं है अब मेरे प्यार को
मैं कैसे करार दूं अब दिले बेकरार को
ये पैमाना प्यार का क्यूं छलकता नहीं
आंखों में है समन्दर पर छलकता नहीं
जाने हुआ है क्या ये मेरे ऐतबार को
क्यूं नफ़रत सी हो गई है इन्तजार को
बेघर सा हूं मगर क्यूं अब भटकता नहीं
आंखों में है समन्दर पर छलकता नहीं
एक प्यार का समन्दर यूं लेता है करवटें
फैली हैं हर डगर पर अब मेरी ये सलवटें
इन निगाहों से दर्द क्यूं छलकता नहीं
आंखों में है समन्दर पर छलकता नहीं
- लेखराम यादव
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