पहलगाम में
डॉ.एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात "
शांत वादियों में, बर्फ़ीली हवा में,
खुशियों के रंग घुलते थे जहाँ।
आए थे कुछ अनजान चेहरे,
प्रकृति की सुंदरता पीने वहाँ।
किन्तु अचानक, चीत्कार की गूँज,
शांति भंग हुई, मचा कोहराम।
आतंक के काले साए ने घेरा,
पहलगाम की धरती हुई लहू-लुहान।
फूलों की घाटी रक्त से सनी,
सपनों की चिताएँ जलती रहीं।
अतिथि जो आए थे श्रद्धा सुमन ले,
आतताइयों की गोली से बिंधे वहीं।
विश्वास की डोर पल भर में टूटी,
मानवता कराह उठी बेबसी।
किस नफरत ने जन्मा यह ज़हर,
जिसने उजाड़ दिया जीवन की बसी।
यह हमला केवल कुछ जानों पर नहीं,
यह प्रहार है कश्मीर की आत्मा पर।
उस स्वर्ग पर, जहाँ शांति की थी सदा,
अब छाया है आतंक का गहरा पहर।
मगर हम डरेंगे नहीं, झुकेंगे नहीं,
फिर उगाएंगे अमन के गुलशन।
पीड़ितों के दर्द को समझेंगे मिलकर,
और जीतेंगे नफरत के हर भीषण क्षण।
पहलगाम की मिट्टी रोई ज़रूर,
पर उसकी हिम्मत आज भी अटल।
हम फिर से भरेंगे विश्वास के रंग,
और तोड़ेंगे आतंक के हर कुटिल छल।