तुम्हारी नजर में आए।
भूकंप के झटके खाए।।
सम्हलते सम्हलते गिरे।
तभी से उठ नही पाए।।
तुम्हारी बाहें तकते रहे।
उठाने वाले कई आए।।
दास्तान जिंदा 'उपदेश'।
पलटकर तुम नही आए।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद
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भूकंप के झटके खाए।।
सम्हलते सम्हलते गिरे।
तभी से उठ नही पाए।।
तुम्हारी बाहें तकते रहे।
उठाने वाले कई आए।।
दास्तान जिंदा 'उपदेश'।
पलटकर तुम नही आए।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद