उसने मुझे सर पर उठा रखा है
कहाँ गिराएगा, डराए रखा है
क़त्ल कर दे तो किसे ख़बर होगी
उसने मुझे जहान से छिपा रखा है
बहुत दूर ले आया वह मुझे अपने साथ
कहाँ छोड़ आएगा, एक ख़ौफ़ सता रहा है
अब उसके बग़ैर जीना मुमकिन नहीं
कहीं वह अब छोड़ न दे, ख़ौफ़ सता रहा है
उसकी ख़ातिर दिन-रात लड़ा हूँ मैं जंग
हार गया मैं, पर वह पहले ही जीता बैठा है
दिमाग़ दिल से पूछता है, वह अब क्या करेगा
जो अब मेरी आदतों में समाया बैठा है