मिज़ाज फ़िज़ा का केसरिया हो गया,
पलाश के दरख़्तों पर जो फूलों का बसेरा हो गया।
फाल्गुन और चैत्र आँखों को बड़ा सुकून देता है,
इन महीनों में नज़ारा जो केसरिया होता है।
बालकनी में बैठ बस इन्हीं को तकती रहती हूँ,
और सोचती हूॅं कि काश ! ये पलाश
बारहों महीने फूलों से लदा रहता।
खुद को बड़ा ही खुशनसीब समझती हूॅं,
पलाश के बाग़ान के करीब जो अपना घर रखती हूॅं।
हर किसी के नसीब में कहाॅं होता है
यूं पलाश की गोद में बैठ मोहब्बत का तराना लिखना,
इतना मनमोहक नज़ारा कि
खुद खुदा भी चाहता होगा इनके पास बैठना।
💐 रीना कुमारी प्रजापत 💐
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




