सारा जीवन श्रापित श्रापित हर रिशता बेनाम कहो
मुझको हे छलने के खातिर मुरली वाले श्याम कहो
किसे लिखु मै प्रेम की पाती, कैसे कैसे इंसान हुये
रणभूमि में छल करते हो, तुम कैसे भगवान हुये
मन कहता है, मन करता है, कुछ तो माँ के नाम लिखु
इक मेरी जननी को लिख दु, इक धरती के नाम लिखु
प्रश्न बड़ा है मौन खड़ा, धरती संताप नही देती
धरती मेरी माँ होती तो, मुझको श्राप नही देती
जननी माँ को वचन दिया,पांडव का काल नही हुँ मै
जो बेटा गंगा मे छोड़े, उस कुंती का लाल नही हुँ मै
क्या लिखना इन्हे प्रेम की पाती,जो मेरी ना पहचान हुये
रणभूमि में छल करते हो तुम कैसे भगवान हुये
सारे जग का तम हरते, बेटे का तम ना हर पाये
इंद्र ने विषम से कपट किये, बस तुम ही सम ना कर पाये
अर्जुन की सौगंध की खातिर, बादल ओट छुपे थे तुम
श्री क्ष्ण के एक इशारे, कुछ पल अधिक रुके थे तुम
पार्थ पराजित हुआ जो मुझसे, तुम को रास नही आया
देख के मेरे रण कौशल को, कोई पास नही आया
दो पल जो तुम रुक जाते तो, अपना शौर्य दिखा देता
मुरली वाले के सम्मुख, अर्जुन का शीश गिरा देता
बेटे का जीवन हरते हो, तुम कैसे दिनमान हुये
रणभूमि में छल करते हो तुम कैसे भगवान हुये
पक्षपात का चक्रव्युह क्यो द्रोण नही तुम से टूटा
सर्वश्रेष्ट अर्जुन ही हो, बस मोह नही तुम से छूटा
एकलव्य का लिया अंगूठा, मुझको सूत बताते हो
खुद दौने में जन्म लिया और मुझको जात दिखाते हो
अब धरती के विश्व विजेता परशूराम की बात सुनो
एक झूठ पर सब कुछ छीना, नियती का आघात सुनो
देकर भी जो ग्यान भुलाया, कैसा शिष्टाचार किया
दानवीर इस सूर्यपुत्र को, तुमने जिंदा मार दिया
फिर भी तुमको ही पूजा है, तुम हे बस सम्मान हुये
रणभूमि में छल करते हो तुम कैसे भगवान हुये

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




