ग़ज़ल में तुझको जब से लिखने लगी।
लोगों को मुझमें तेरी छवि दिखने लगी।।
हाथ छूटा जब से तेरी पकड़ ढीली हुई।
खुद को बेतहासा जाने क्यों चुभने लगी।।
तुमने ही देखे थे ज़ख्मों के निशान मेरे।
अब आँख के कोने में करक होने लगी।।
तुम ही रहते थे अधरों में बन कर खुशी।
बिना तुम्हारे फीकी दुनिया लगने लगी।।
बिना दवा के नींद आती नही 'उपदेश'।
बेशक ख्वाबों की दुनिया मे रहने लगी।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद