सुन तो लेते हैं मगर कुछ नहीं कहते आंसू,
जाने क्या सोचते रहते हैं ये बहते आंसू।
कभी खुद पै कभी किस्मत पै कभी ईश्वर पै,
रोया करते हैं फूट-फूट के बहते आंसू।
कभी गम में कभी खुशी में या कभी यूं ही,
टपकने लगते हैं पलकों से ये बहते आंसू।
कभी-कभी तो दिल को पता भी नहीं चलता,
सूख जाते हैं आ के गालों पर बहते आंसू।
कभी सावन कभी भादों कभी महावट बन,
झर लगा देते हैं दिन-रात ये बहते आंसू।
टूटे अरमानों की लाशों पै सिर को पटक पटक,
हिचकियां ले के रोया करते हैं बहते आंसू।
मिलन के मीठे पल हो या हो घड़ी बिछड़न की,
पलकों के बांध तोड़ जाते हैं बहते आंसू।
ये बिना पांव चले आते दिल से आंखों तक,
जाने क्या कहना चाहते हैं ये बहते आंसू।
जान जब निकलती है आंखों के दरवाजों से,
बंद पलकों से ढ़रक जाते हैं बहते आंसू।
गीतकार अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाई कोर्ट ग्वालियर मध्य प्रदेश

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




