इन वादियों में तुम्हें ढूंढ रही थी नज़र हमारी
पहाड़ों से पूछा सनम की है कुछ ख़बर हमारी
फूलों ने कहा बसी है फ़जा में रूह -ए-एहसासात
खुशबू भी है मुझमें क्यों सुकून से होती नहीं बसर तुम्हारी
बाबली सी भटकते देख बोली सबा बेकार है बेक़रारी
अभी तो बहुत लम्बी है तन्हा काटने को उमर तुम्हारी