वारिद आओ आज बरसाओ,
जीव जगत के अंतहीन सुख।
क्लांति करुण कोमल नैनों के
भींगे भाव अंतर गंभीर।
बजती उज्ज्वल स्मित में खूब
अनंत पीर की मृदु वेणु ।
दुख शाश्वत शीत सा सुनहरा
झरते सुमन का विषाद गहरा।
बहती मुझसे कितनी नदियां
ढलते दिन की मुरझाई वल्लरियां।
राग - रागिनी आघात झंकार
धरा और व्योम का प्रीत प्रलाप।
बरसाओ बस प्रेम अनुराग
आह्लाद अंतस्थ के अपरंपार।
वारिद आओ आज बरसाओ
उन्माद हृदय के असीम अगाध।
_ वंदना अग्रवाल "निराली "