दिन रात मचलता रहता है मन पागल सा
हर ठौर भटकता रहता है पागल सा
दूर क्षितिज पर जो तारों की छाँव घनी हो
इक चाँद झाँकता रहता है पागल सा
शंखनाद होता है प्रातः रोज यहां मंदिर में
भारी बस्ता लदता रहता है पागल सा
धूप में सारे साये जो खुद घटने लग जाते
पथिक राह चलता रहता है पागल सा
सो जाते हैं थक के दुनिया के जीव सभी
अंतर्मन तब जगता रहता है पागल सा
रोज समंदर की लहरों में फंसती है नौका
मांझी फिर लड़ता रहता है पागल सा
जीवन अपना कैसी अनबूझ पहेली दास
रो रोकर भी हँसता रहता है पागल सा. .


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







