उनकी तस्वीर उभर आई यादो के झरोखे से।
घंटों बैठे रहते सोचकर लिखते रहते रूखे से।।
किसको फुर्सत जो आकर पूछ ले हाल-चाल।
खुद की तकदीर के ही होंगे मिजाज सूखे से।।
उनके दिलोदिमाग पर मेरा इख्तियार थोड़ी है।
नजर मिले तो कुछ कहूँ घूंघट के झरोखे से।।
ख्वाहिशें पाली सब धरी की धरी रह गई मेरी।
दिल की उदासी जाती नही है मौसम रूखे से।।
उस पल का इंतजार आज भी मुझे 'उपदेश'।
कभी अपनी रहनुमाई से हरा कर दे सूखे से।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद