एक भोर के निकलते ही,
कुछ देर बाद
मेरे बगीचे के फूलों में भी
कोई रंग भरने लगा..
कहीं नेपथ्य में
अदृश्य कूंची चलती रही..
मैने हर्षित भाव के कुछ हिस्से उनकी
देह में भरने की कोशिश की..
मगर वो अब यकायक उदास हो गए,
चेहरे की भाव भंगिमाएं स्थाई रूप से
विषमता का आंचल ओढ़ कर खड़ी हो गई..
मैने विस्मित होकर पूछा,
क्या हुआ है कि, मेरी खुशी में तुम
प्रतिभागी नहीं बन रहे हो..
एक फूल शेष फूलों की ओर निर्निमेष
दृष्टि से देखते हुए बोला..
तुम्हारी मुस्कान तुम्हारा हर्ष
दिखाने भर को ही था..
तुम्हारी रोजी रोटी की बेचैनी में
रातभर की टूटती नींद के,
छोटे छोटे अंश आकर धंस गए हैं,
हमारी संपूर्ण देह में
तुम्हारी विषमताओं के शूल बनकर..।
पवन कुमार "क्षितिज"


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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