चाँदनी की चाह ने सबको ही पागल कर दिया है
जिन्दगी की आह ने सबको उजागर कर दिया है
मोहब्बतों के नाम पर हैँ चल रहीं कितनी दुकानेँ
रिश्तों का आज हर घर में कारोबार कर दिया है
सड़ गए रीति रिवाज दौलत का ऊपर से मुलम्मा
अमीर हो या गरीब सबको बराबर कर दिया है
भीड़ भारी हर जगहा है शोरगुल दिन रात फिर भी
सब तन्हा बैचैन हमको किसने बेघर कर दिया है
जिन्दगी कटती नहीं है दास दुनिया की हिरस में
गिरें तो ना बचेंगे क्यूं इतना ऊँचा कद दिया है II