क्या कहने इस ज़िन्दगी के
पता नहीं ??
हमारे साथ खेलती है
या हमें खेल खिलाती है
जैसे ही एक सोच दी
अपनों के प्रति मन में विरक्ति लाने की
अगले ही पल
अनजानों से प्रीति कराने लगी
क्या खूब हैं इसके दाव पेच
न अनुभव से समझ आती है
न ही समझकर अनुभव की जा सकती है
ऐसी ज्योति का प्रकाश है
जिसके चाहने से ही हम रोशन हो सकते हैं
अन्यथा स्वयम् तो उसे हम छू भी नहीं सकते
यदि छू लिया तो सहन नहीं कर सकते ..
वन्दना सूद