मेरे ख्वाबों से तेरी रातों का,
मुश्किल है निबाह क्यूं..
मेरी आंखों में आंसू है,
तेरे लब पे नहीं इक आह क्यूं..।
आसमां में हैं लाखों तारे,
और है एक माहताब भी..
फिर भी मेरी तकदीर में है,
राते इतनी सियाह क्यूं..।
तुझे चाहने भर से ही,
दुश्मन सारा जहां हो गया..
अब भी है मुहब्बत दुनिया में,
नामचीन गुनाह क्यूं..।
तेरी खातिर लोग खड़े हैं,
कैसी कैसी मुबाहिसें लिए..
मेरी जानिब जो थे,
वो अब मुकर गए गवाह क्यूं..।
रोशनियां है इस कदर कि,
बंद आंखों में उजाले हैं..
मंजिलों से फिर भी हम,
हुए जाते हैं गुमराह क्यूं..।
----पवन कुमार "क्षितिज"