झुकी हुई नज़रें, लब हैं खामोश,
मौन निमंत्रण, ले लो न आगोश,
जब भी करता हूँ तुम्हें आलिंगन,
हाथों में चूड़ियों की ये खन-खन,
प्रेम के गीत सुनाते हैं ये कंगन।
निभाती है वो हरेक रस्मों-रिवाज,
बुला न पाती जब दे कर आवाज,
बुलाती है मुझे खनका के कंगन,
हाथों में चूड़ियों की ये खन-खन,
प्रेम के गीत सुनाते हैं ये कंगन।
प्रेम में इसके बोल लगते बड़े मीठे,
हो अगर गुस्सा तो लगते बड़े तीखे,
बदलती रहती है राग अपने छन-2,
हाथों में चूड़ियों की ये खन-खन,
प्रेम के गीत सुनाते हैं ये कंगन।
जन्मों-जन्मों तक रहेंगे हम साथ,
मेरे हाथों में रख कर अपने हाथ,
दे दें एक-दूजे को आज ये वचन,
हाथों में चूड़ियों की ये खनखन,
प्रेम के गीत सुनाते हैं ये कंगन।
🖊️सुभाष कुमार यादव