ज्यादा नहीं तो कम चाहती हूँ
बस मैं थोड़ी आज़ादी चाहती हूँ
पैदा हुए तब से बंधनमे पली बड़ी हूँ
नजरोमें नज़र कैद बनी रही हूँ
थोड़ा ही सही ख़ुद का सुकून चाहती हूँ
बस मैं थोड़ी आज़ादी चाहती हूँ
अरमानों की रोजाना होली बनती हूँ
दिवाली सी रंगत समर्पण करती हूँ
कुर्बान सपनों भरी गलियां करती हूँ
गमों को पीकर दामन में सुवास भर्ती हूँ
ज्यादा नहीं तो कम चाहती हूँ
बस मैं थोड़ी आज़ादी चाहती हूँ
भले न मिलें मन चाहा स्वीकार करती हूँ
थोडी-सी हंसी की चमक चाहती हूँ
चहकना, महकना कहां चाहती हूँ
थोड़ी सी बिंदास होना चाहती हूँ
ज्यादा नहीं तो कम चाहती हूँ
बस मैं थोड़ी आज़ादी चाहती हूँ
आखरी सांस तक अंदाज़ न छोड़ती हूँ
दुःख के सागरमें बसेरा करती हूँ
सुख की लहरें प्रतिदिन बांटती हूँ
फिर भी अपमानित हर बार होती हूँ
ज्यादा नहीं तो कम चाहती हूँ
मां की ममता स्त्री का दायित्व हूँ
हर क़िरदार बखूबी निभाती हूँ
भेद-भाव न जानू, एक नज़र से निहारू हूँ
पाबंदी न लगाओ, हमपर निखरना चाहती हूँ
ज्यादा नहीं तो कम चाहती हूँ
बस मैं थोड़ी आज़ादी चाहती हूँ ....!!!!!