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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

नारी की व्यथा

ज्यादा नहीं तो कम चाहती हूँ
बस मैं थोड़ी आज़ादी चाहती हूँ
पैदा हुए तब से बंधनमे पली बड़ी हूँ
नजरोमें नज़र कैद बनी रही हूँ
थोड़ा ही सही ख़ुद का सुकून चाहती हूँ
बस मैं थोड़ी आज़ादी चाहती हूँ

अरमानों की रोजाना होली बनती हूँ
दिवाली सी रंगत समर्पण करती हूँ
कुर्बान सपनों भरी गलियां करती हूँ
गमों को पीकर दामन में सुवास भर्ती हूँ
ज्यादा नहीं तो कम चाहती हूँ
बस मैं थोड़ी आज़ादी चाहती हूँ

भले न मिलें मन चाहा स्वीकार करती हूँ
थोडी-सी हंसी की चमक चाहती हूँ
चहकना, महकना कहां चाहती हूँ
थोड़ी सी बिंदास होना चाहती हूँ
ज्यादा नहीं तो कम चाहती हूँ
बस मैं थोड़ी आज़ादी चाहती हूँ

आखरी सांस तक अंदाज़ न छोड़ती हूँ
दुःख के सागरमें बसेरा करती हूँ
सुख की लहरें प्रतिदिन बांटती हूँ
फिर भी अपमानित हर बार होती हूँ
ज्यादा नहीं तो कम चाहती हूँ

मां की ममता स्त्री का दायित्व हूँ
हर क़िरदार बखूबी निभाती हूँ
भेद-भाव न जानू, एक नज़र से निहारू हूँ
पाबंदी न लगाओ, हमपर निखरना चाहती हूँ
ज्यादा नहीं तो कम चाहती हूँ
बस मैं थोड़ी आज़ादी चाहती हूँ ....!!!!!




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

Lekhram Yadav said

बहुत सुन्दर रचना और बहुत सुंदर ख्वाहिश, आपको सादर नमस्कार स्नेह धारा जी।

स्नेह धारा replied

जी.... प्रणाम और धन्यवाद आपका

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