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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

एहसास इंसानियत की रूह

एहसास - इंसानियत की रूह
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"एहसास"...एक ऐसा लफ़्ज़, जो अपने भीतर न जाने कितनी भावनाओं, नर्मी और इंसानियत की पूरी दुनिया समेटे हुए है। यह शब्द जितना छोटा है, इसका असर उतना ही गहरा है। ये वही एहसास है जो हमें एक जिन्दा इंसान से एक जागरूक, संवेदनशील और रूहदार इंसान में तब्दील करता है।
एहसास क्या है?
एहसास... किसी के आँसुओं को अपनी पलकों से पोछने की तड़प, एहसास... किसी के दर्द को बिना कहे समझ लेने की शक्ति, एहसास... किसी अनजान की पीड़ा में भी दिल का पसीज जाना, और सबसे बढ़कर एक दिल से दूसरे दिल तक बिना शब्दों के पहुँचने वाली पुल की तरह है।
जब हम कहते हैं कि "जिसमें एहसास नहीं, वो इंसान नहीं" -तो यह एक जुमला नहीं, बल्कि इंसानियत का सबसे सच्चा आईना है।
इंसान और मशीन में फर्क क्या है? मशीनें काम कर सकती हैं, सोच भी सकती हैं, पर एहसास सिर्फ़ एक इंसान ही कर सकता है। और जब वही इंसान अपने एहसास खो दे, तो सोचिए इस धरती पर कैसी वीरानी छा जाएगी?
इंसानियत की असली कसौटी
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आज हम एक ऐसे समय से गुज़र रहे हैं जहाँ भौतिक तरक्की ने हमारी ज़िंदगी को तेज़ तो कर दिया है, मगर हमारी आत्मा को कहीं भीतर तक खोखला भी बना दिया है।
हम इमारतें ऊँची बना रहे हैं, लेकिन दिल संकुचित होते जा रहे हैं।
तकनीक ने दूरियों को मिटा दिया है, पर दिलों में फ़ासले और बढ़ा दिए हैं।
और इन्हीं दूरियों में सबसे ज़रूरी चीज़ खोती जा रही है-एहसास।
इंसानियत का मतलब सिर्फ़ किसी को खाना खिला देना नहीं होता।
अगर कोई इंसान किसी भूखे को रोटी देता है, क्या वह पहले उसका धर्म पूछता है?एहसास वो ज़रिया है जो हमें हर बाँटने वाली दीवार के पार ले जाकर इंसान से इंसान को जोड़ता है।
क्या करें हम ?
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अगर आप कुछ बड़ा नहीं कर सकते, तो कोई बात नहीं। मगर एक मुस्कान दीजिए, किसी का हालचाल पूछिए, किसी की सुन लीजिए, और जब ज़रूरत हो, तो मदद का हाथ बढ़ाइए-बिना किसी शर्त के।
सच्ची इंसानियत किसी अख़बार की सुर्खी नहीं बनती, वो तो किसी अनजाने गली के मोड़ पर किसी रोते हुए चेहरे पर मुस्कान लाने की एक ख़ामोश कोशिश होती है।
आख़िर में इतना ही कहूंगी हमें याद रखना होगा हमारी पहचान हमारे नामों से नहीं, हमारे पहनावे या रुतबे से नहीं, बल्कि हमारे एहसास से होती है।
अगर हम सच में रब की इबादत करना चाहते हैं, तो उसकी सबसे हसीन मख़लूक-इंसान-से मोहब्बत करना सीखिए। जिस दिन हम नफ़रत के जवाब में मोहब्बत, और ग़लत सोच के मुक़ाबले में इंसानियत को चुनने लगेंगे, उस दिन ये दुनिया वाक़ई एक बेहतर जगह बन जाएगी।
एक कोशिश कीजिए, एहसास को मरने मत दीजिए। क्योंकि जब तक एहसास ज़िंदा है, तब तक इंसानियत भी ज़िंदा है।
डाॅ फ़ौज़िया नसीम शाद




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

फ़िज़ा said

एहसास को मरने मत दीजिए। क्योंकि जब तक एहसास ज़िंदा है, तब तक इंसानियत भी ज़िंदा है। वाह वाह क्या बात है,

शिवचरण दास said

बहुत खूब बहुत गहन बहुत सहज

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