आजकल लोग मजबूरी को,
हमारी कमजोरी मान बैठे हैं
दर्द मिश्रित आंसुओं को ,
पानी जान बैठे हैं
भाव समझने लायक नहीं हैं,
यथामति ही सोचेंगे
व्यर्थ ही हम लोगों को
समझदार जान बैठे हैं
तुच्छ मानसिकता वाले
क्या समझेंगे पीड़ा को?
जो भ्रमवश स्वयं को
खुदा मान बैठे हैं
वक्त भी बदलता है ,
हालात भी बदलते हैं
जाने क्यों लोग वक्त को
अपना मान बैठे हैं ?
राजनीति की गलियों से,
वाकिफ नहीं थे हम
तभी तो,सियासत को
सच्चाई मान बैठे हैं
हमें गिराने के लिए
साजिशों की पनाह लेते हैं
कमाल है! दोगले स्वयं को
इन्सान मान बैठे हैं
माना आज मुश्किलों से
अकेले लड़ रहे हैं
कल भीड़ में चमकेंगे ,
ये हम भी ठान बैठे हैं
====मंजू जाखड़