
खड़ा हूँ मैं राह दिखाती हुई रौशनी में,
भूखे हैं मेरे हाथ, खूबसूरत है दुनिया.
बाग का बड़ा हिस्सा
नही पातीं मेरी आँखें
कितने आशापूर्ण हैं वे,
कितने हरे-भरे .
एक चमकीली सड़क
गुजर रही है
शहतूत के पेड़ों से होकर
कैदखाने के अस्पताल की
खिड़की पर खड़ा हूँ मैं.
दवाओं की गंध
नहीं ले पा रहा मैं --
जरूर गुलनार के फूल
खिल रहे होंगे
कहीं आस-पास.
गिरफ्तारी तो दीगर मसला है,
असल मुद्दा है हार न मानना।