नई पीढी आज कहां जा रही,
पश्चिमी शैली इनकाे भा रही।।१।।
हर रिस्ते नाते सब कुछ ताेड रही,
सभ्यता भूल संस्कृति काे भी छाेड रही।।
यह एक बुरी बात है,
देश के लिए यही ताे घात है।।
शराब पी रही और माैज उडा रही,
नई पीढी आज कहां जा रही।।२।।
बीडी भी पी रही तम्बाखू चबा रही,
गांजा और चरस भी खा रही।।
साथ में फिर गुटका भी ले रही,
ये कैसी देन हमें दे रही।।
तास खेल सीगार भी सुलगा रही,
नई पीढी आज कहां जा रही।।३।।
मंजिल चढते-चढते लटक गई,
सही मार्ग छाेड वह भटक गई।।
किसी से भी नहीं डर रही,
देर रात शाेर-शराबा कर रही।।
नंगा हाे नाच पाप गीत गा रही,
नई पीढी आज कहां जा रही।।४।।
बर्तमान इनकी सड चूकी,
इन्हें गलत आदत पड चूकी।।
हम में से काेई उनके पास जाएं
जरा कुछ ताे समझा कर आएं ।।
ये कब सुध्रेङे यही चिन्ता खा रही,
नई पीढी आज कहां जा रही।।५।।
नई पीढी आज कहां जा रही.......
----नेत्र प्रसाद गौतम