तुम वही मैं भी वही तकरार कैसी।
वक्त बदला आज भी मंझधार वैसी।।
तन्हा तूँ भी नही पता है मैं भी नही।
फिर जिंदगी क्यों लगती उधार जैसी।।
प्रेम धारा को सुखा पाना सम्भव नही।
प्रकृति के विरुद्ध सोच नागवार जैसी।।
ख्वाब-ओ-ख्वाहिशों पर काम कर लें।
वर्ना जिन्दगी हो जाएगी उतार जैसी।।
स्मृति के वृक्ष इतने छांवदार 'उपदेश'।
तेरी वसीयत लाजवाब आभार जैसी।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद