हर रोज़ नई चाह में सुलगे हुए सभी
अपने बनाए जाल में उलझे हुए सभी
सारी दुनिया बस हमारी मुठ्ठी में आये
दास इस हसरत में हैं पगले हुए सभी।
मुहब्बत भरे पैगाम लाते थे परिंदे
हर सुबह शाम चहचहाते थे परिंदे
काट कर दरख़्त बनवास दे दिया
चेहरे पे नई मुस्कान लाते थे परिंदे।
सांस रुकती है बंद कमरों में
आह उठती है बंद कमरों में
गुम हुआ खुला खिला आंगन
ये रात घुटती है बंद कमरों में।
जीवन जीना एक कला है
जो छिप जाए वही भला है
हवा बुझाती है दीपक पर
हवा बिना भी कहां जला है
अपनी छोड़ो मुंह मत मोड़ो
दुनिया तो मिट्टी का डला है।
दाना मिलते ही परिंदे चहकने लगते हैं
फूल उगते ही खिलने महकने लगते हैं
दूध पिलाने पालने वाले को मगर ख़ुद
सांप फुफकार कर उसे डसने लगते हैं।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




