यूं हर किसी के आंसू पोंछने न जाया करो
लोग तुम्हें आंचल समझ बैठेंगे,
यूं हर वक्त नज़रों के सामने न आया करो
लोग तुम्हें काजल समझ बैठेंगे,
उनकी यादों से भरी मुस्कुराहटों को लेकर यूं महफ़िल में न जाया करो,
वरना लोग तुम्हें पागल समझ बैठेंगे।
–कमलकांत घिरी